गुरुवार, 12 नवंबर 2009

एक और विकल्प

एक और विकल्प

तुम्हें हरामखोर कहूं
या हरामजादा
अब तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
गाली से पैदा होने वाली
तकलीफ का एहसास
तुममें मर चुका है
गुज़र गए हैं तैंतीस साल
और हम गाली दे-देकर थक गए हैं.

हमने देखा है
जब-जब हमने तुम्हें गाली दी
वह तुम्हारे हाथों से चिपक गयी
और यकायक वे गालियाँ
दो कबूतरों में तब्दील हो गईं
एक कबूतर की गर्दन मरोड़कर
तुमने अलाव के ऊपर रखी भट्ठी में
और दूसरे को मनचाही दिशा में
ऊंचा उछाल दिया

मरे हुए कबूतर का चश्मदीद गवाह
अब एक आतंक का शिकार था
आतंक कबूतर को सिर्फ बाहर से ही नहीं
अंदर से भी जकड़ने लगा
आतंक बड़ा होने लगा
और अचानक एक रात
आतंक ने ऑक्टोपस का रूप ले लिया

अब कबूतर गुटर गूं नहीं करता
बल्कि लाइन लगा कर
दाना चुगता है
लम्बी उड़ान नहीं लेता
बस ज़रा से पंख फटकार लेता है
वह ज्योंही आँख खोलता है
उसे अलाव पर  भुनता हुआ
दूसरा कबूतर दिख जाता है
वह चुपके से आँखे फिर मूँद लेता है

कोई फर्क नहीं पड़ता अब
कि कबूतर आजाद है
पर अलाव तो अभी भी गर्म है
और मैं चीख कर फिर
राजपथ और जनपथ के चौराहे के बीच
गाली देने लगता हूँ
पर तुममें वह ताकत भी नहीं रही
जो गाली की भाषा समझ सके
तो आओ क्यों न हम कोई और भाषा
ईजाद करें
क्यों न मान लें
कि भाषा सिर्फ शब्द नहीं होती
न कविता/न गाली
हथियार भी एक भाषा हो सकती है.

(यह कविता १९८० में लिखी गयी थी. १९८३ में प्रकाशित मेरे पहले कविता संग्रह 'सवाल अब भी मौजूद है' में संकलित.

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

KUCHH SAMAJHHA AAPNE

कुछ समझा आपने

कुछ देखा आपने
हाल में अँधेरा हुआ
और मंच आलोकित हो उठा

कुछ सुना आपने
हाल में खामोशी हुई 
सूत्रधार अपना वक्तव्य देने लगा
और खामोशी सन्नाटे में बदल गयी

कुछ सोचा आपने
कि वक्तव्य देने के लिए
अँधेरा और खामोशी
कितनी ज़रूरी है .

ग़फलत में न रहें
सावधान होकर सोचें
आपको अंधरे में डालना
और खामोशी से बांधना
कितना वाजिब है
कितना मुनासिब.

वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
संगीत की लय
और पांवों की ताल के साथ
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
गौर किया आपने
पूरा नाटक ख़त्म हो गया
पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं

देखा आपने
प्रकाश ने फिर फैलकर आपको
अपनी बांहों में भर लिया
आपने भी भर लिया
प्रकाश को
अपनी आत्मा में
चल दिए दर्शक दीर्घा से बाहर
वक्तव्य को हनुमान चालीसा
बनाकर

ध्यान दिया आपने
कि आपके हाथ
वहीं कहीं तो नहीं रह गए
चिपके हुए कुर्सी के हत्थों के साथ
या पाँव
धंसे हुए फर्श में
या आँखें
या सिर
वहीं कहीं हवा में घुले
सूत्रधार के वक्तव्य के साथ .

कुछ समझा आपने ?