कहा तो था तुमने
ख़त लिखने को
और मैंने
सिर्फ़ शिकायतें दर्ज कीं
कहा तो था तुमने
मिलने को भी कभी
और मैं
रास्तों को
नक्शों में तब्दील करता रहा
कहा तो था तुमने शायद
फोन करना
थोडी शाम ढलने के बाद
और मैं गुमसुम
हवाओं के पर काटता रहा
मालूम नहीं
हर बार
कुछ होना
कुछ और क्यों होता रहा !
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शुक्रवार, 25 जुलाई 2008
मंगलवार, 22 जुलाई 2008
अहम् अस्मि
पहाड़ों की गुफाओं में
भागते चले जाना
अंधे घोड़ों तरह
और शिलाखंडों पर
समय की स्याही से
लिख देना
अपना पैगाम
शताब्दी के नाम
या बिखेर देना रंगों के दरिया
पेड़ की जड़ों में
या भर देना
शून्य को
हज़ार हज़ार सूरजों के लाली बन
या सोख लेना
समुद्र का खारापन
आचमन की मुद्रा में
और धरती की तहों में भर लेना
एक अविजित एहसास
बहुत मामूली से लगने वाले पलों का
आदमियत की अविरल बहती परम्परा में
ख़ुद को पहचानने की कोशिश ही तो है !
सोमवार, 14 जुलाई 2008
यक्ष प्रश्न
अँधेरा जब अंधेरे में ही लिपटा हो
और हमें सूर्य की कल्पना से भी
महरूम कर दिया जाए
तब पृथ्वी के कौन से हिस्से पर
हम अपना पाँव टिका सकते हैं ?
जब जल को वाष्प में बदल कर
फैला दिया जाए पूरे माहौल में
कोहरे की तरह
और नदी को पृथ्वी के नक्शे से ही
मिटा दिया जाए
तो हलक में फंसे शब्दों को
माहौल में पटकने के लिए
जल कहाँ से जुटा सकते हैं ?
जब हवाओं को स्थिर करके
कुछ चट्टानों की तरह
दाल दिया गया हो बंदी-गृहों में
तब गति की तलाश में
भटकती चेतना के वारिस
तरलता कहाँ से पा सकते हैं ?
कल्पना कुंद
माहौल में कोहरा
जल और गति-हीन जीवन चक्र की
धुरी का आप हम क्या अर्थ लगा सकते हैं ?
और हमें सूर्य की कल्पना से भी
महरूम कर दिया जाए
तब पृथ्वी के कौन से हिस्से पर
हम अपना पाँव टिका सकते हैं ?
जब जल को वाष्प में बदल कर
फैला दिया जाए पूरे माहौल में
कोहरे की तरह
और नदी को पृथ्वी के नक्शे से ही
मिटा दिया जाए
तो हलक में फंसे शब्दों को
माहौल में पटकने के लिए
जल कहाँ से जुटा सकते हैं ?
जब हवाओं को स्थिर करके
कुछ चट्टानों की तरह
दाल दिया गया हो बंदी-गृहों में
तब गति की तलाश में
भटकती चेतना के वारिस
तरलता कहाँ से पा सकते हैं ?
कल्पना कुंद
माहौल में कोहरा
जल और गति-हीन जीवन चक्र की
धुरी का आप हम क्या अर्थ लगा सकते हैं ?
सोमवार, 7 जुलाई 2008
धर्म
मेरी एक पुरानी कविता
धर्म
धर्म ने हमसे बहुत कुछ लिया है
बदले में
गिद्ध की आँख
हाथी के दांत और
कबूतर का दिल दिया है
धर्म
धर्म ने हमसे बहुत कुछ लिया है
बदले में
गिद्ध की आँख
हाथी के दांत और
कबूतर का दिल दिया है
रविवार, 6 जुलाई 2008
मेरा प्रथम ब्लॉग
मेरे प्रथम ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आशा करता हूँ मेरे सृजन की भूख और अन्वेषण की पहुँच आपको फिर आने के लिए प्रेरित करेगी।
धन्यवाद।
प्रताप.
धन्यवाद।
प्रताप.