हदों से बाहर भी होता है शब्द
चट्टानों को तोड़कर
कंदुक सा उछलता आता है
कोई भाव
और शब्द की पोशाक पहनकर
हमारे होने का हिस्सा होता है
या फिर
समुद्र-तल से उठती
कोई तेज़ तरंग
अपना सफ़र तय करती
टकराती है तट से
और कुछ सपनीले मोती छोड़
जाती है -
अपनी दमक बिखेरते मोती
हमारे कन्धों पर सवार हो जाते हैं
या फिर
दूर कंदराओं से उठती
गेरुआ गंध
समा जाती है नासिका-रंध्रों में
और अन्दर ही अन्दर
कहीं खनक उठता है कुछ
शायद शब्द !
शब्द ब्रह्म है
और ब्रह्म ज्योतिर्पिंड
हिरण्यगर्भा
समझाया है महाजनों ने
पर शब्द नहीं है सिर्फ ब्रह्म
शब्द ब्रह्म होने का पूर्वाभास भी है
और पूर्वाभास
हदों को फलांग-फलांग कर
बिखर जाता है
चीहनी अनचीहनी दिशाओं में
ढोता है शब्द
भविष्य में अतीत .
अनोखा विज्ञापन: जब यू-ट्यूब विडियो से निन्जा बाहर कूद पड़े
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बहुत सालों पहले, जब यू-ट्यूब नही था तब एक जावा स्क्रिप्ट बहुत पोपुलर थी जो
वेब पेज में लिखे हुए को इधर उधर घुमा देती थी, फोटुओं वाले पेज की फोटो बिखरा
देती...
13 वर्ष पहले
सर, आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा। आप की रचनाएं अच्छी लगी। आशा भविष्य में औरकुछ देखने को मिलेगा। हमारी शुभकामनाएं स्वीकार केरेंष
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