शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

स्त्री-पुरुष

उन दोनों के बीच
हमेशा एक सुगंध फ़ैली रहती थी
झगड़ा तब हुआ
जब उन दोनों के बीच
एक पेड़ उग आया
वह कहती - बबूल का पेड़ है यह
वह कहता - यह चिनार है
सारी बहस के केंद्र में
यही तय करना था
कि पेड़ चिनार है या बबूल

इसी बहस में
सुगंध कहीं दूर
अन्दर फैले कंगूरों पर टंग गई
और बहस यह साबित करने के लिए होती रही
कि पेड़ चिनार है या बबूल .

दोनों पेड़ों की शख्सियत में
इतना फ़र्क
फिर भी दोनों तुले थे
साबित करने को
कि पेड़ तो वही है
जो उनकी पुतलियों में उतरता है
हार कर पुरुष ने कहा
हो सकता है कि बबूल भी कहीं समाया हो
चिनार की शिराओं में .
उसने अपनी पुतलियों में उतरे
पेड़ की शिराओं में
बबूल ढूंढ़ना शुरू किया
उसे दिखा कि
चिनार की शिराओं में
कहीं उलझी हैं बबूल की शिराएँ
उसने स्वीकार कर लिया
हाँ शायद कहीं बबूल भी
समाया है चिनार कि पसलियों के नीचे
नहीं बबूल ही है वह
और शायद कहीं
चिनार समा गया है
बबूल की पसलियों में.

सारी बहस यहीं आकर स्थगित हो जाती
और चिनार बार-बार
अपनी शख्सियत खोजता
बबूल से उलझता रहता
बहस कहीं भी ख़त्म नहीं होती
और कंगूरों पर टंगी सुगंध
लौटने की प्रतीक्षा में
अभी वहीं टंगी है
शायद ! सूखने का इंतज़ार करती हुई .