शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

Hadon se bahar bhi hota hai shabd

हदों से बाहर भी होता है शब्द


चट्टानों को तोड़कर
कंदुक सा उछलता आता है
कोई भाव
और शब्द की  पोशाक पहनकर
हमारे होने का हिस्सा होता है
या फिर

समुद्र-तल से उठती
कोई तेज़ तरंग
अपना सफ़र तय करती
टकराती है तट से
और कुछ सपनीले मोती छोड़
जाती है -
अपनी दमक बिखेरते मोती
हमारे कन्धों पर सवार हो जाते हैं
या फिर
दूर कंदराओं से उठती
गेरुआ गंध
समा जाती है नासिका-रंध्रों में
और अन्दर ही अन्दर
कहीं खनक उठता है कुछ
शायद शब्द !

शब्द ब्रह्म है
और ब्रह्म ज्योतिर्पिंड
हिरण्यगर्भा
समझाया है महाजनों ने
पर शब्द नहीं है सिर्फ ब्रह्म
शब्द ब्रह्म होने का पूर्वाभास भी है
और पूर्वाभास
हदों को फलांग-फलांग कर
बिखर जाता है
चीहनी अनचीहनी दिशाओं में
ढोता है शब्द 
भविष्य में अतीत .

1 टिप्पणी:

  1. सर, आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा। आप की रचनाएं अच्छी लगी। आशा भविष्य में औरकुछ देखने को मिलेगा। हमारी शुभकामनाएं स्वीकार केरेंष

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टिप्‍पणी सच्‍चाई का दर्पण है