बुधवार, 5 मई 2010

घर


उन्होंने जगह तय कर ली है

मेरे घर की बालकनी की छत का एक कोना

तय कर लिया है उन्होंने

कि वे अपना घर यहीं बनाएंगे

वे दोनों बहुत जल्दी में हैं

कि कब घर बने और

कब बसे उनका घर-संसार

कबूतर एक-एक तिनका कमा कर लाता है

कबूतरी बड़े जतन से

एक-एक तिनके को सहेज-संभाल कर

कबूतर की चोंच से लेती है

और तामीर करती है

अपना घर-संसार

पूरा दिन - यानी उनकी उम्र का

एक हिस्सा लग जाता है

उन्हें घर बनाने में।

घर बन गया है

कबूतर नाच-नाच कर रिझा रहा है

कबूतरी को

कबूतरी नखरैल होकर

इधर-उधर घूमती है

थोड़ी देर पहले

दोनों जुटे हुए थे घर तामीर करने में

घर तामीर करने की खुशी में

सारा दिन खटने के बाद भी

थके नहीं वे दोनों

नाच-झूम कर प्रवेश करना चाहते

एक-दूसरे की आत्मा में

और बसाना चाहते हैं

अपना घर-संसार

कितनी बड़ी है यह दुनिया

जो सिमट कर रह जाती है

एक छोटे से घर में

उस छोटे से घर के छोटे से

घर-संसार में।

3 टिप्‍पणियां:

  1. भाई कमाल हो गया. आपने जनम ले लिया और हमें पता ही नहीं चला. सब तरफ गालों की थालियाँ बज रही हैं जी, श्रोता बधाइयाँ मांग रहे हैं और आप हो कि कबूतर की गुटुर्गू पर पैदा होते ही कविता कह रहे हो जी. तुलसी दास जन्मे थे तो काशी के राजासाहब बताते हैं कि वह हे राम कहते हुए दुनिया में आये थे और आप हो कि कबूतर की गुटुर्गू के रोमांस पर कविता कहते अवतरित हुए हो जी. इसे कहते हैं होनहार बिरवान के होत चीकने पात. अब मैं ये सोचूँ कि जो कवि पैदा होते ही गुटुर्गू की ध्वनियों को समझने की सलाहियत रखता हो, उसके अन्दर छुपे रोमांस को महसूसता हो, वह कोई मामूली कवि नहीं होगा. तो साब जी, मान लिया कि आप बड़े कवि हो. और बड़े लोगों को मैं अक्सर आपने घर बुलाता रहता हूँ. अपना इश्तेतश बढ़ता है न जी. आप सोचो जी, कार से आयेंगे, साथ में शशि बिर्जाई होंगीं, मैं वेलकम करूंगा, तो अपने इंदिरापुरम की ग्रीनरी को ओनर नहीं मिलेगा क्या? एक कवि, कथाकार, नाटककार, सीनियर प्रोफेसर, जाने क्या-क्या...और उसपर अपार प्रतिभा संपन्न मेरी शशि बिर्जाई जी. अब जनम ले ही लिया है तो इंदिरापुरम की तरफ भी गड्डी मोड़ लो जी. इधर भी बहुत से कबूतरों के जोड़े रहते हैं. सब रोमैंटिक है. कविता का पूरा जुगाड़ है. कहानी भी लिख सकते हैं जी. तो....आएंगे न जी..? -रंजन जैदी , alpst-literature.com

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