सोमवार, 7 जुलाई 2008

धर्म

मेरी एक पुरानी कविता

धर्म

धर्म ने हमसे बहुत कुछ लिया है
बदले में
गिद्ध की आँख
हाथी के दांत और
कबूतर का दिल दिया है

3 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लागिंग की दुनिया में आपका स्वागत हॆ,गुरुवर! आज के इस तथाकथित’धर्म’ने इंसान को डरपोक ऒर आक्रामक बना दिया हॆ.आपकी यह सारगर्भित रचना,लगभग 14-15 साल पहले,आपके निवास स्थान पर,आयोजित काव्य-गोष्ठी में सुनी थी.पुरानी यादें फिर से ताजा हो गईं. धर्म पर ही आपकी एक ऒर कविता हॆ,उसे भी लिखें.

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  2. धर्म पर आपके विचार् जान कर बड़ा अच्छा लगा

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टिप्‍पणी सच्‍चाई का दर्पण है