मेरी राय ..........आपकी राय
हिंदू समाज में विवाह के समय कन्यादान की प्रथा प्रचलित है। कन्यादान पिता हैं तो पिता द्वारा और पिता किसी भी कारण से अनुपस्थित हैं तो भाई या किसी नजदीकी रिश्तेदार द्वारा किया जाता है। यानि कन्यादान विवाह की एक अनिवार्यता है । कन्यादान के साथ पुण्य फल को भी जोड़ा जाता है । मेरी राय में यह एक मध्यकालीन और अतार्तिक प्रथा है । दान की गई वस्तु से तो व्यक्ति का रिश्ता हमेशा के लिये समाप्त हो जाता है, लेकिन बेटी से सम्बन्ध तो जीवन पर्यंत बना रहता है । फिर कन्या कोई वस्तु नहीं है , जिसे दान दिया जा सके । आज के समय में यह प्रथा पिछडी हुई तो है ही , शर्मनाक भी है । इस प्रथा के साथ जुड़े अंधविश्वासों से मुक्ति पाना ज़रूरी है
कानूनी तौर पर इस प्रथा से शायद जल्दी छुटकारा न मिले लेकिन इस के विरोध में जनमत बनाकर इससे मुक्त हुआ जा सकता है । इस सम्बन्ध में आपके क्या राय है ?
अनोखा विज्ञापन: जब यू-ट्यूब विडियो से निन्जा बाहर कूद पड़े
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बहुत सालों पहले, जब यू-ट्यूब नही था तब एक जावा स्क्रिप्ट बहुत पोपुलर थी जो
वेब पेज में लिखे हुए को इधर उधर घुमा देती थी, फोटुओं वाले पेज की फोटो बिखरा
देती...
13 वर्ष पहले
बेटी किसी भी रूप में दान देने योग्य वस्तु नहीं हो सकती.
जवाब देंहटाएंसमयानुसार प्रथाओं में परिवर्तन होते रहें है. वैसे भी कन्यादान अब केवल नाम लेने जैसा ही है, भावनाएं वैसी नहीं है.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह हिन्दू रीति-रिवाज का मामला है। इसमें मेरे जैसे अज्ञानी का कुछ भी कहना गलत होगा। मैं जन्म से एक इस्लाम धर्मावलंबी हूं, इसलिए कुछ कह नहीं सकता।
जवाब देंहटाएं'कन्या' से तात्पर्य, जहाँ तक मैं समझता हूँ, 'virgin' से है और 'कन्यादान' से तात्पर्य उस कन्या को सौंपने से रहा होगा जो मन से 'virgin' हो। हो सकता है कि मेरी अवधारणा गलत हो, क्योंकि ऐसा मैंने कहीं पढ़ा नहीं है, अपने मन में सोचा भर है। 'virginity'का सम्बन्ध भी विदेशी-संस्कृति में जहाँ शरीर से है, भारतीय संस्कृति में मन से है। इसकी पुष्टि उस श्लोक से होती है जिसमें कुन्ती और द्रोपदी जैसी बहु-पति वाली स्त्रियों को 'कन्या' कहा गया है। अत: 'कन्यादान' पर बात करने से पहले 'कन्या' की अवधारणा को समझ लेना आवश्यक है। समय के साथ बहुत-से शब्द अपने मूल अर्थों को खो देते हैं, यह तो आप जानते ही हैं। इसलिए इस बदले हुए समय में ऐसे रीति-रिवाज जिनको आम आदमी बेमतलब ढो रहा है, छोड़ दिए जाएँ तो गलत कुछ नहीं है।
जवाब देंहटाएंकन्यादान शब्द ही अजीब लगता है जैसे हम कोई वस्तु दान कर रहे हो।लेकिन पुरानी मान्यताओ को आसानी से हटाया नही जा सकता।अत: इस के लिए समाज को जागृत करने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंSuresh Yadav maanaskemoti+o. को
जवाब देंहटाएंविवरण दिखाएँ १६:४६ (6 घंटों पहले)
आदरणीय सहगल जी .कन्यादान पर आपके विचार सही हैं .कोई भी नारी का सम्मान करने वाला इसको समर्थन नहीं देगा सामंती कल में ऐसी कुप्रथाओं को आस्थाओं और विश्वासों में स्थान मिला है .अधिकांश लोग इसी लिए समर्थक मिलेंगे .बेटी के प्रति गहरा लगाव भी इस का समर्थक बन गया है इसलिए भावनात्मक भी है ब्रह्मण पोषक होने के कारन सामाजिक शक्ति लिए है नारी जैसे ही शिक्षित ,स्वव्लाम्वी,और धन्स्वमिनी होगी यह प्रथा समाप्त हो जायेगी . 09818032913
आदरणीय सहगल जी .कन्यादान पर आपके विचार सही हैं .कोई भी नारी का सम्मान करने वाला इसको समर्थन नहीं देगा सामंती कल में ऐसी कुप्रथाओं को आस्थाओं और विश्वासों में स्थान मिला है .अधिकांश लोग इसी लिए समर्थक मिलेंगे .बेटी के प्रति गहरा लगाव भी इस का समर्थक बन गया है इसलिए भावनात्मक भी है ब्रह्मण पोषक होने के कारन सामाजिक शक्ति लिए है नारी जैसे ही शिक्षित ,स्वव्लाम्वी,और धन्स्वमिनी होगी यह प्रथा समाप्त हो जायेगी . 09818032913
जवाब देंहटाएंpriya avinash ji english se hindi banane ke chakkar men aap ke naam se tippadi ho gai takniki baten sikhane men samaya lagega aap ko bhi mere sath mehanat karani paregi .bhai subhash neerav ji se puchh leta hun kripaya thik karalen dhanyavad.
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