मेरी राय में वोट देना कानूनन अनिवार्य कर देना चाहिये और उस कानून में ऐसा
प्रावधान किया जाये कि जो व्यक्ति अपने मतदान के अधिकार का उपयोग ना करे,
उसे दण्डित किया जाये. मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति अपने मतदान के
इलाके में मौजूद होकर भी अकारण मतदान नहीं करता तो उस पर उसकी मासिक आय का
एक प्रतिशत जुर्माना लगाया जाये और अगर उसकी आय शून्य है तो उससे किसी
सामाजिक योजना में एक दिन का श्रमदान करवाया जाये.........
आपकी क्या राय है
अनोखा विज्ञापन: जब यू-ट्यूब विडियो से निन्जा बाहर कूद पड़े
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बहुत सालों पहले, जब यू-ट्यूब नही था तब एक जावा स्क्रिप्ट बहुत पोपुलर थी जो
वेब पेज में लिखे हुए को इधर उधर घुमा देती थी, फोटुओं वाले पेज की फोटो बिखरा
देती...
13 वर्ष पहले
jis desh me sampatti ka adhikar / chikitsa / shuddh peya jal ki uplabdhata ka adhikar nahee ho wahaa voting ko mandatary kahana ya karane ki baat karana bemaani hai. ha negative voting jaroor laagoo ki jaaye jisase hum yah bhi bataa sake ki jitane bhi pratyashi maidan me hai uname se koi bhi upyukt nahee hai. none of them deserve to be our representative.
जवाब देंहटाएंThanks
बिल्कुल ऎसा ही होना चाहिए, लेकिन तब जब सरकार ने जन-मानस को जीत लिया हो। आज अराजकता की जो स्थिति है, क्या आपको लगता है कि वोट का अधिकार आम आदमी को पता भी है। साहब आप झारखंड आइये। यहां 22 में से 18 जिलों में सरकार का कानून नहीं चलता, घोषित रूप से इन जिलों में बंदूक का शासन चलता है। करीब-करीब पौने दो करोड़ ग्रामीण आबादी नक्सलियों के सीधे प्रभाव में है और किसी की हिम्मत नहीं कि झारखंड के गढ़वा, चतरा, बालूमाथ, लोहरदगा, सिमडेगा, गुमला, सिमरिया और यहां तक कि रांची के ग्रामीण इलाकों से शाम को साढ़े छह बजे के बाद गुजर जाये। हाइ-वे बंद हो जाते हैं। आप जानते ही होंगे कि नक्सलियों के द्वारा वोट बहिष्कार की घोषणा की जाती है। आम दिनों में जिन नक्सलियों के भय के कारण एक एम्बुलेंस में मरीज़ को लेकर रांची इलाज के लिए आना दूसरे जिलों के लोग व्यर्थ समझते हों, वहां आप गांव-गांव में वोट डालने की जुर्रत कर सकते हैं। मैंने मिसाल दी है झारखंड की। देश के सात राज्य ऎसे हैं, जहां लोग दिल्ली जाने को इंडिया जाना कहते हैं। ड्राइंग रूम से ओपीनियन बनाना तो सबसे आसाम काम है। ये हो जाना चाहिए, वो हो जाना चाहिए... ये सब बात तभी ठीक लगती है, जब आदमी के पास कोई परेशानी न हो। आप ही बताइये कि अमेरिका में क्या हम लोगों से ज्यादा समृद्धि नहीं है। वहां हम लोगों से ज्यादा कल्चर्ड लोग नहीं हैं, हैं। इसके बावजूद वहां भी वोट देना अनिवार्य नहीं है। क्यों? क्योंकि वहां की सरकारें भी इस बात को जानती हैं कि हम जनता की आकांक्षाओं पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पा रहे हैं। एक छोटा सा उदाहरण देकर मैं बात खत्म करूंगा कि एक बच्चे को मां दूध पिलाती है, तो उसके भीतर उस बच्चे के लिए ममत्व का भाव होता है। उसी अनुपात में बच्चा भी अपनी मां से उतना ही स्नेह करता है। क्या हर औरत हर बच्चे से और हर बच्चा हर औरत से एक ही प्रकार का स्नेह कर सकता है। नहीं कर सकता। फलाफल ये है कि बच्चे का स्नेह पाने के लिए मां को भी बच्चे को टाइम-टाइम पर दूध पिलाना होता है। और देश की हालत तो यह है कि यहां नेता रूपी बाप जनता रूपी बच्चों का खून चूस रहे हैं। फिर क्या वजह है कि आपके मन में यह ख्याल आता है कि वोट देना अनिवार्य कर देना चाहिए?
जवाब देंहटाएंBhagat ji Negative voting is not the solution of anything.........why no gud candidate is in election because you and I do not want to be the contestant, you dot not want your children to participate in the election.......So its our duty and responsibility to at least VOTE for the person which is best suit among all candidates.......
जवाब देंहटाएंIt is the public which made these candidate....My father was contestant in one of the municipal election and I did some campaign for him.........I went to almost 200 houses in my colony and out of those 200 at least 50 people told me that "We know Jain Shahab from last 25 years and we did not want such a good man to come into politics......he should not contest the election"..............so What we can say to such voters..........
वोट किसी दवाव मैं नहीं डलवाया जाना चाहिए फिर चाहे वह वोट की अनिवार्यता की बात हो अथवा नेताओं द्वारा बहला फुसला कर प्रलोभन देकर या साम दम दंड भेद से दवाब डालकर . क्या वोटर्स को मजबूर कर स्वतंत्र व निष्पक्ष वोट प्राप्त किया जा सकता है . यदि किसी मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो . अतः जरूरी है की aisa वातावरण और व्यवस्था बनाया जाए जिसमे मतदाता स्वेक्षा से वोट डालने जाए . धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंजब तक लोग इसे नैतिक दायित्व नहीं समझेंगे, कुछ नहीं होगा. कानून तोड़ने में तो सब को महारत हासिल है.
जवाब देंहटाएंवोट अनिवार्य रूप से देने हेतु माननीय सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जोकि माननीय कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई है . मै उड़नतश्तरी जी के विचारो से सहमत हूँ कि लोगो को अपना नैतिक दायित्व समझना चाहिए और उन्हें इस हेतु मानसिक रूप से स्वयम तैयार होना होगा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमुद्दे में भी मजा आया और मुद्दे पर आई टिप्पणियों में भी। प्रताप सहगल जी को वोटर में 'कामचोर' नजर आता है। जाहिर है कि वे न तो देश की सड़कों से वाकिफ हैं और न सरकारी स्कूलों/सरकारीकार्यालयों/न्यायालयों/सांसदों/विधायकों/नौकरशाहों द्वारा पल-पल उपेक्षित वोटर की दयनीय स्थिति से। हुजूर, सजा उस आदमी को देनी जायज है जो समस्त सुविधाएँ पाने के बावजूद अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है और जिसने वोटर को मतदान के प्रति 'नीरस' बना दिया है। वह आदमी कौन है? बेशक, आप उसे जानते हैं, लेकिन उसे दण्डित करने की सलाह देने की हिम्मत आप नहीं करेंगे। क्यों? यह भी आप जानते हैं।
जवाब देंहटाएंअपने इस प्रश्न पर मैने कई प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं देखीं. मित्रों ने मेरी राय में एक शब्द 'अकारण' पर ध्यान ही नहीं दिया. दरअसल यह प्रश्न उठाते समय मेरे निशाने पर शहरों में बैठे वे लोग थे जो वोट डालने जाना- को हिकारत की निगाह से देखते हैं. अगर आप वोट इसलिए नहीं डालने जा सकते कि आप बीमार हैं, किसी ज़रुरी वजह से अपने मतदान क्षेत्र से बाहर हैं या कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी हुई है तो वोट ना देने का कारण मौजूद है. अगर आप अकारण मतदान में हिस्सा नहीं लेते तो फिर आपको कोई शिकायत करने का अधिकार भी नहीं है. आशा है अब आप मेरे प्रश्न की मंशा समझ कर अपनी सार्थक प्रतिक्रियाएं देंगे
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