अर्थहीन नहीं है सब
जब ज़मीन है
और पांव भी
तो ज़ाहिर है
हम खड़े भी हैं
जब सूरज है
और आंखें भी
तो ज़ाहिर है
प्रकाश भी है
जब फूल है
और नाक भी
तो ज़ाहिर है
खुशबू भी है
जब वीणा है
और कान भी
तो ज़ाहिर है
संगीत भी है
जब तुम हो
और मैं भी
तो ज़ाहिर है
प्रेम भी है
जब घर है
और पड़ोस भी
तो ज़ाहिर है
समाज भी है
जब यह भी है
और वो भी
यानी नल भी
जल भी और घड़ा भी
तो ज़ाहिर है
घड़े में जल भी है
अर्थ की तरह
और
आदमी है समाज में
हर प्रश्न के
हल की तरह .
अनोखा विज्ञापन: जब यू-ट्यूब विडियो से निन्जा बाहर कूद पड़े
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बहुत सालों पहले, जब यू-ट्यूब नही था तब एक जावा स्क्रिप्ट बहुत पोपुलर थी जो
वेब पेज में लिखे हुए को इधर उधर घुमा देती थी, फोटुओं वाले पेज की फोटो बिखरा
देती...
13 वर्ष पहले
प्रिय भाई प्रताप
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी है एवं और अधिक अच्छी इसलिए भी है कि तुमने लिखा है
जब तुम हो
और मैं भी
तो ज़हिर है
प्रेम भी है
इस कविता में जीवन के प्रति एक स्वस्थ दृष्टिकोण तो है ही, साथ ही जहां एक ओर अवसादग्रस्त कायर व्यक्ति दुनिया के खत्म होने की चिंता को भयावह बना सब ओर निरर्थक ही देख रहे हैं, वहां यह कविता उस अर्थ को जीवंत करती है जो मानव की ताकत में विश्वास को स्थिर रखता है।
इस कविता की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह मुझ जैसे नासमझ को भी समझ आ गई।
बधाई
प्रेम जनमेजय