मंगलवार, 22 जुलाई 2008

अहम् अस्मि

पहाड़ों की गुफाओं में

भागते चले जाना

अंधे घोड़ों तरह

और शिलाखंडों पर

समय की स्याही से

लिख देना

अपना पैगाम

शताब्दी के नाम

या बिखेर देना रंगों के दरिया

पेड़ की जड़ों में

या भर देना

शून्य को

हज़ार हज़ार सूरजों के लाली बन

या सोख लेना

समुद्र का खारापन

आचमन की मुद्रा में

और धरती की तहों में भर लेना

एक अविजित एहसास

बहुत मामूली से लगने वाले पलों का

आदमियत की अविरल बहती परम्परा में

ख़ुद को पहचानने की कोशिश ही तो है !

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