जो इंसान हम कविता में बुनते हैं
उसी की तलाश हम सड़कों पर करते हैं
जो आँखें हम कविता में रचते हैं
उन्हीं आंखों को हम गली के मुहाने पर
कोई अनाम सत्य खोजते हुए
देखना चाहते हैं
जो सपने हम गुफाओं में उकेरते हैं
उन्हें हम चिलचिलाती धूप में
जिंदा रखना चाहते हैं
संबंधों की ऊष्मा का पानी
जो उड़ चुका है भाप बनकर
उसीकी भागीरथी हम
जीवन में उतारना चाहते हैं
बर्तनों की असलियत पर
कलई चढा चढा कर
एक चमक पालना चाहते हैं
पेडों की जड़ों में
स्वार्थ का तेजाब डाल डाल कर
उन्हें हरा रखना चाहते हैं
पर्वतों के पांवों को रेत में बदलकर
करना चाहते हैं उन्हींके ऊंचे शिखर
पोखरों में उतरकर
करते हैं समुद्र मंथन
इन विरोधी ध्रुवों के बीच
जो एक खुला मैदान है
वहीं हम
खेलने से हैं बचते
नहीं
कभी भी नहीं
ख़ुद को अपनी ही कसौटी पर कसते ।
अनोखा विज्ञापन: जब यू-ट्यूब विडियो से निन्जा बाहर कूद पड़े
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बहुत सालों पहले, जब यू-ट्यूब नही था तब एक जावा स्क्रिप्ट बहुत पोपुलर थी जो
वेब पेज में लिखे हुए को इधर उधर घुमा देती थी, फोटुओं वाले पेज की फोटो बिखरा
देती...
13 वर्ष पहले
इन विरोधी ध्रुवों के बीच
जवाब देंहटाएंजो एक खुला मैदान है
वहीं हम
खेलने से हैं बचते
नहीं
कभी भी नहीं
ख़ुद को अपनी ही कसौटी पर कसते ।
बिल्कुल सटीक कहा !!
बहुत गहन भाव लिए चिन्तनपरक रचना! बधाई.
जवाब देंहटाएंSir, I really appreciate your thoughts. At first your Poem just quivered my mind!
जवाब देंहटाएं"जो सपने हम गुफाओं में उकेरते हैं
उन्हें हम चिलचिलाती धूप में
जिंदा रखना चाहते हैं"
Inn Lines ne hilla diya..!
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Darpan Mago
सर बहुत खूब : कभी भी नहीं ख़ुद को अपनी ही कसौटी पर कसते. अगर इस बात को समझ ले तो फिर कहने क्या.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बात कही है.
जवाब देंहटाएंगर लिया खुद को कसौटी पर कस
जवाब देंहटाएंतो पड़ेगीं सोटियां खूब सट सट सट