शनिवार, 5 सितंबर 2009

दुरमुट

मजदूर के हाथों
रोडी कूटता दुरमुट
फिसल जाता है
हथिया लेता है उसे डॉक्टर
और मोटी सुई बना लेता है
मास्टर के हाथों में
छडी बन जाता हैं दुरमुट
पिता के हाथों आदेश
राजनेता के हाथ में
स्टेनगन होता है दुरमुट
और धर्माचार्य के होंठों पर
काला मन्त्र

अजीब शै है दुरमुट
हाथ बदलते ही शक्ल बदलता है
सुई, छडी, आदेश , काला मन्त्र
या नौकरशाह की
भारी भरकम कलम

कितना अच्छा लगता है
मजदूर के हाथ में ही दुरमुट
समतल करता ज़मीन
उस पर बनता है फर्श
फर्श पर ही टिके रहते हैं पाँव
वहीं से दीखते हैं शहर, कसबे और गाँव

दुरमुट का हाथ बदलना
इतिहास में बार-बार हुई एक दुर्घटना है ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. दुरमुट का अद्भुत प्रयोग किया हैआपने अपनी इस रचना में...बधाई
    नीरज

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  2. सही दिशा की और जाती सुंदर रचना। बधाई!

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  3. हाथ पल पल रूप बदलता है
    कभी दुरमुट कभी सुई कभी
    ...
    इंसान को तब भी भला लगता है

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टिप्‍पणी सच्‍चाई का दर्पण है